Mahakumbh 2025 – जानिए… कौन होते हैं खूनी, खिचड़ी और बर्फानी नागा साधु , इन में क्या अंतर है? 

By betultalk.com

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Mahakumbh 2025 :- महाकुंभ की शुरुआत हमेशा नागा साधुओं के स्नान से होती है। कुंभ के दौरान आपको हमेशा नागा साधु दिखाई देंगे। कुंभ खत्म होते ही नागा साधु वापस लौट जाते हैं। हालांकि, नागा साधु कहां जाते हैं, यह कोई नहीं जानता। Mahakumbh लेकिन ऐसा माना जाता है कि ये साधु तपस्या के लिए पहाड़ों और जंगलों में चले जाते हैं, जहां लोग उन्हें ढूंढ नहीं पाते। और वे वहां आराम से अपनी साधना कर सकते हैं। नागा साधु चार प्रकार के होते हैं।

प्रयाग में होने वाले कुंभ से दीक्षित नागा साधु को राजेश्वर कहा जाता है क्योंकि ये संन्यास के बाद राजयोग की कामना रखते हैं. उज्जैन कुंभ से दीक्षा लेने वाले साधुओं को खूनी नागा कहा जाता है l Mahakumbh इनका स्वभाव काफी उग्र होता है. हरिद्वार दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को बर्फानी कहते है, ये शांत स्वभाव के होते हैं. नाशिक कुंभ में दीक्षा लेने वाले साधु को खिचड़ी नागा कहलाते हैं. इनका कोई निश्चित स्वभाव नहीं होता है l

कैसे बनते हैं नागा?

दूसरे अमृत स्नान में भी पहला अमृत स्नान नागा साधुओं का ही होगा। लेकिन इससे पहले 27 जनवरी को अखाड़ों में अनुष्ठान की शुरुआत होगी, जिसमें पहले दिन आधी रात को विशेष पूजा होगी। इस पूजा में दीक्षा लेने वाले संतों को गुरुओं के सामने लाया जाएगा। संन्यासी आधी रात गंगा में 108 डुबकी लगाएंगे और स्नान के बाद उनकी आधी शिखा काट दी जाएगी। इसके बाद उन्हें तपस्या के लिए वन भेज दिया जाएगा और फिर जब संत अपना शिविर छोड़ देंगे तो उन्हें मनाकर वापस बुलाया जाएगा।

Mahakumbh 2025 – जानिए… कौन होते हैं खूनी, खिचड़ी और बर्फानी नागा साधु , इन में क्या अंतर है? 

नागा साधु बनने के तीन चरण – Mahakumbh 2025

नागा साधु बनने की प्रक्रिया काफी लंबी और कठिनाई से भरी होती है. साधकों को पंथ में शामिल होने के लिए तकरीबन 6 साल का समय लगता है. नागा साधु बनने के लिए साधकों को तीन स्टेज से होकर गुजरना पड़ता है. जिनमें से पहला महापुरुष, दूसरा अवधूत और तीसरा दिगंबर होता है. अंतिम संकल्प लेने तक नागा साधु बनने वाले नए सदस्य केवल लंगोट पहने रहते हैं. कुंभ मेले अंतिम संकल्प दिलाने के बाद वे लंगोट का त्याग कर जीवन भर दिगंबर रहते हैं l

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भू या जल समाधि

कहा जाता है कि नागा साधुओं का दाह संस्कार नहीं किया जाता है. बल्कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी समाधि लगा दी जाती है. उनकी चिता को आग नहीं दी जाती है क्योंकि, ऐसा करने पर दोष लगता है. ऐसा इसलिए क्योंकि, नागा साधु पहले ही अपना जीवन समाप्त कर चुके होते हैं. अपना पिंडदान करने के बाद ही वह नागा साधु बनते हैं इसलिए उनके लिए पिंडदान और मुखाग्नि नहीं दी जाती है. उन्हें भू या जल समाधि दी जाती है l

5 लाख नागा साधु – Mahakumbh 2025

हालांकि, उन्हें समाधि देने से पहले स्नान कराया जाता है और इसके बाद मंत्रोच्चारण कर उन्हें समाधि दे दी जाती है. जब नागा साधु की मृत्यु हो जाती है तो उनके शव पर भस्म लगाई जाती है और भगवा रंग का वस्त्र डाले जाते हैं. समाधि बनाने के बाद उस जगह पर सनातन निशान बना दिया जाता है ताकि लोग उस जगह को गंदा न कर पाए. उन्हें पूरे मान-सम्मान के साथ विदा किया जाता है. नागा साधु को धर्म का रक्षक भी कहा जाता है. नागा साधुओं के 13 अखाड़ों में सबसे बड़ा जूना अखाड़ा है, जिसके लगभग 5 लाख नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं l

स्थान के मुताबिक दीक्षा लेने वाले नागाओं की होती है पहचान

महाकुंभ में स्थान के मुताबिक दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं की पहचान होती है, जो उनके करीबी भी जानते हैं। यानी कि अखाड़ों को पता चलता है कि यह कौन से नागा है। जैसे उज्जैन में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को खूनी नागा कहा जाता है, हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को बर्फानी और नासिक में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं का खिचड़िया जबकि प्रयागराज में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को राजराजेश्वरी कहा जाता है।

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