“बचपन में मां ने नारी का किरदार निभाया है, उसने ही तो हमे ठीक से चलना, बोलना और पढ़ना सिखाया है। उम्र जैसे बढ़ी तो पत्नी ने नारी का रूप दिखाया है,उसने हर परिस्थिति में हमे डटकर लड़ना सिखाया है। फिर बेटी ने नारी का रूप अपनाया है, दुनिया से प्यार करना सिखाया है।और तो क्या ही लिखूं मैं नारी के सम्मान में, हम सब तो खुद ही गुम हो गए हैं अपने ही पहचान में”। यह कविता है देश की पहली महिला राज्यपाल और स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू की। जिनकी आज पूरा देश जयंती मना रहा है। उनका भारतीय इतिहास में भी खास योगदान रहा है। सरोजिनी नायडू को भारत की कोकिला भी कहा जाता है। उन्होंने देश की आजादी और महिलाओं के अधिकारों के लिए अहम भूमिका निभाई थी। राजनीति में भी उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। साथ ही अपनी कविता के माध्यम से नायडू ने भारत की संस्कृति, स्वतंत्रता के संघर्ष और महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई को खूबसूरती से दर्शाया। उनके द्वारा किए गए संघर्षों और उनकी प्रेरणा के लिए भारत में हर साल 13 फरवरी को सरोजिनी नायडू के जन्मदिन को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका
आपको बता दे कि, सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनीं और स्वतंत्र भारत की पहली महिला राज्यपाल (उत्तर प्रदेश) बनने का गौरव भी उन्हें प्राप्त हुआ। उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। नायडू असहयोग आंदोलन, होम रूल आंदोलन, नमक सत्याग्रह में शामिल थीं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्हें 5 बार गिरफ्तार किया गया था।
इंग्लिश, बंगला, उर्दू, तेलुगु और फारसी जैसी अन्य भाषाओं का ज्ञान था
सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। उनकी माता का नाम वरद सुंदरी था, वे कवयित्री थीं और बंगाली भाषा में लिखती थीं। सरोजिनी का 19 साल की उम्र में सन् 1898 में डॉ. गोविन्द राजालु नायडू से विवाह हुआ। उनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था, जो एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे। ‘भारत कोकिला’ के नाम से प्रसिद्ध हुई सरोजिनी ने मात्र 14 वर्ष की उम्र में सभी अंग्रेजी कवियों की रचनाओं का अध्ययन कर लिया था। 1895 में हैदराबाद के निजाम ने उन्हें वजीफे पर इंग्लैंड भेजा। सरोजिनी नायडू एक प्रतिभावान छात्रा थीं। उन्हें इंग्लिश, बंगला, उर्दू, तेलुगु और फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था।
13 साल की उम्र में “लेडी ऑफ दी लेक” कविता लिखी थी
नायडू एक बेहतरीन कवियत्री थीं और उन्होंने बचपन में ही अपनी हुनर का परिचय दे दिया था। महज 13 साल की उम्र में उन्होंने लेडी ऑफ दी लेक नामक कविता लिखी। गोल्डन थ्रैशोल्ड उनका पहला कविता संग्रह था।
महिलाओं के अधिकारों के लिए सरोजिनी नायडू का भी रहा योगदान
सरोजिनी नायडू भारत में महिला अधिकारों की वकालत करने वाली देश की पहली महिला थीं। उनके कुछ प्रमुख योगदानों में महिलाओं के मताधिकार और समान अधिकारों की प्रबल समर्थक थी। उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए 1917 में महिला भारतीय संघ की स्थापना की गई।महात्मा गांधी ने सरोजिनी नायडू की काव्यात्मक उत्कृष्टता के सम्मान में उन्हें “भारत की कोकिला” की उपाधि दी। उन्होंने असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह जैसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया।अपने साहित्यिक कार्यों के माध्यम से महिलाओं को प्रेरित करना, जिसमें द गोल्डन थ्रेशोल्ड, द बर्ड ऑफ टाइम और द ब्रोकन विंग जैसे उनके प्रसिद्ध कविता संग्रह शामिल हैं।
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सरोजिनी नायडू का और भी अन्य योगदान है
प्रसिद्ध कवयित्री नायडू एक प्रसिद्ध कवयित्री थीं और उन्होंने अंग्रेज़ी तथा उर्दू दोनों में रचनाएँ कीं। उन्होंने वर्ष 1912 में प्रकाशित ‘इन द बज़ार्स ऑफ हैदराबाद’’ उनकी सबसे लोकप्रिय कविताओं में से एक है।उनके अन्य कार्यों में “द गोल्डन थ्रेशोल्ड (1905)”, “द बर्ड ऑफ टाइम (1912)” और “द ब्रोकन विंग (1912)” शामिल हैं।