Betul News: प्राचीन परंपरा के अनुसार रक्षाबंधन पर्व के दूसरे दिन भुजरियां का त्योहार आमला नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में मंगलवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। नगर व ग्रामीण क्षेत्रो में सामूहिक रूप से भुजरियां ले जाकर देव स्थानों व नदी, तालाब व कुओं में इनका विसर्जन विधि-विधान के साथ किया गया। धूमधाम से भुजरिया का त्योहार मनाया गया।
आमला नगर क़े इतवारी चौक श्री कृष्ण मंदिर में भुजरिया एकत्रित हुए…
जहां पर भुजरिया की पूजा की गई और प्रसाद वितरण किया गया मंदिर क़े व्यवस्थापक मुकेश राठौर ने बताया कि प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष की मंदिर में भुजरिया एकत्रित हुए और पूंजा की गयी!!सुबह से इस पर्व को लेकर उल्लास प्रारंभ हो गया था और भुजरियों को एक जगह एकत्रित कर पूरे परिवार के साथ बैठकर लोगों ने पूजा-अर्चना की। आज मंगलवार को भुजरियों को चंद्रभागा नदी पर जाकर निकालकर सर्व प्रथम भगवान को भेंट किया गया। इसके बाद लोगों ने एक दूसरे से भुजरियां बदलकर अपने गिले-सिकवे भुलाकर गले मिले।
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यह है भुजरियां पर्व
भुजरियां का पर्व सौभाग्य और भाईचारे का प्रतीक भी माना जाता है। पारंपरिक त्योहार प्रकृति के स्वागत और उसकी उपासना से जुड़ा है। माना जाता है कि मैहर में विराजित मां शारदा देवी के वरदान से अमर हुए आल्हा-ऊदल की बहन से भी इस पर्व का गहरा संबंध है। आल्हा की मुंह बोली बहन चंदा के सुरक्षित बचने पर लोगों ने एक-दूसरे को हरित तृण देकर खुशियां मनाईं थीं। हालांकि, यह पर्व भारत की कृषि आधारित परंपरा से जुड़ा है । इसमें बारिश के बाद खेतों में लहलहाती खरीफ की फसल से आनंदित किसान एक-दूसरे को हरित तृण यानी कजलियां भेंट करके सुख और सौभाग्य की कामना करते हैं। यही कजलियां सबसे पहले कुलदेवता व अन्य देवताओं को अर्पित कर सुख-सौभाग्य की कामना की जाती है। एक-दूसरे का सुख-दुख बांटकर जीवन की खुशहाली की कामना करते है ll