इस गांव में 100 साल से नहीं मनाई गई होली, रंग छूने से भी डरते हैं लोग

By betultalk.com

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मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के डहुआ गांव में 100 सालों से होली नहीं मनाई जाती. इस गांव में होली पर मातम होता है और यहां रंग-गुलाल उड़ाने की परंपरा नहीं है. 

Betul Ki Khabar (डहुआ गांव) :- एक तरफ आज जहां पूरा देश होली की मस्ती में मस्त है तो वहीं मध्य प्रदेश में एक गांव ऐसा भी है, जहां रंगों का त्योहार कही जाने वाली होली भी बेरंग है। हम बात कर रहे हैं बैतूल जिले के डहुआ गांव की। यहां के निवासियों ने पिछले 100 वर्षों से होली का त्योहार ही नहीं मनाया। होली के दिन मानों इस पूरे गांव में मातम पसरा रहता है। यहां न तो किसी घर में रंग गुलाल उड़ाए जाते हैं और न ही पकवान बनाए जाते हैं। हद तो ये है कि, यहां कोई किसी को होली की बधाई तक नहीं देता। होली पर लगे इस अघोषित प्रतिबंध में बुजुर्ग और नौजवान ही नहीं बल्कि बच्चे भी आते हैं।

बैतूल के डहुआ गांव के ग्रामीण बताते हैं कि 100 साल पहले गांव के प्रधान नड़भया मगरदे की होली के दिन रंग गुलाल खेलते वक्त गांव की ही एक बावड़ी में डूबने से मौत हो गई थी, जिसके बाद एक-दो साल तक तो होली नहीं मनाई गई, लेकिन जैसे एक बार होली मनाने की कोशिश की गई तो गांव के ही एक परिवार में फिर किसी का देहांत हो गया.

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इस गांव में होली के दिन रंगों से हाथ लगाने को पाप की श्रेणी में रखकर देखा जाता है। होली पर गांव में आम दिनों की तरह चहल-पहल भी नहीं रहती। दोपहर होते होते तो घनीआवादी वाले इस गांव में सन्नाटा पसर जाता है। सिर्फ होली ही नहीं बल्कि पंचमी तक यानी पूरे पांच दिन यहां लोग ऐसे ही मातम में डूबे रहते हैं।

इस गांव में होली पर मातम क्यों होता है?

  • मान्यता है कि 107 साल पहले गांव के प्रधान की होली खेलते समय मौत हो गई थी. 
  • ग्रामीणों का कहना है कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए, इसलिए 100 साल से ज़्यादा समय से गांव में होली नहीं मनाई जाती. 
  • होली पर इस गांव में न तो रंग-गुलाल उड़ाया जाता है, न ही पकवान बनाए जाते हैं. 
  • होली की बधाई तक नहीं दी जाती. 
  • होली पर लगे इस अघोषित प्रतिबंध के दायरे में बच्चे-बूढ़े सभी आते हैं. 
  • होली के दिन मानों इस पूरे गांव में मातम पसरा रहता है. 

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