Betul Ki Khabar/भैंसदेही (मनीष राठौर):- भैंसदेही तहसील, बैतूल यहां की शांत दिखने वाली जमीनें पिछले कई महीनों से एक संगठित, हाईटेक रजिस्ट्री रैकेट के शिकंजे में हैं। इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड कोई और है बल्कि झल्लार निवासी सर्विस प्रोवाइडर रोहित सेमरे और कोई ‘मास्टरमाइंड’ है, जिसने टेक्नॉलजी और प्रशासनिक कमज़ोरियों का भरपूर फायदा उठाकर भोले-भाले ग्रामीणों की जमीन हड़पने का जाल रचा। पर्दे के पीछे का मास्टरमाइंड ग्रामीणों के मामूली सौदों को लाखों में घुमाकर बेचने का पूरा नेटवर्क, सर्विस प्रोवाइडर रोहित सेमरे संचालित कर रहा है। उसने न सिर्फ फर्जी डॉक्यूमेंट तैयार करवाए, बल्कि रजिस्ट्री प्रक्रिया में गवाह, फोटो, सीमाएँ – हर स्तर पर धांधली की। रजिस्ट्री क्रमांक R-18092501372567 में भी सेमरे की सर्विस आईडी सामने आई है, जिससे उसकी भूमिका निर्विवाद हो चुकी है।प्रशासन की सुस्ती या सांठगांठ?मामला भीमपुर तहसीलदार से लेकर जिला कलेक्टर व जिला पंजीयन अधिकारी तक पहुंचा, लेकिन अब तक ना रजिस्ट्री निरस्त, ना पुलिस एफआईआर, ना कर्मचारियों पर कार्रवाई। डिजिटल-बायोमेट्रिक सिस्टम भी गिरोह के सामने बौना साबित हुआ, जिससे ई-गवर्नेंस की साख पर सवाल उठने लगे हैं।
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ग्रामीणों की लड़ाई—इंसाफ और जमीन की वापसीडोक्या के मुन्ना, परसराम, रामरति जैसे पीड़ित अब बार-बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं।मांग है कि रोहित सेमरे की सभी रजिस्ट्री जांची जाएं, पूरी प्रक्रिया का ऑडिट हो और दोषियों को तत्काल कड़ी सजा मिले।आगे क्या?सारे सबूतों के बावजूद “मास्टरमाइंड” की गिरफ्तारी अभी दूर की कौड़ी है। प्रशासनिक उदासीनता या मिलीभगत, दोनों की ही जांच ज़रूरी है।विशेषज्ञ मानते हैं—अगर जड़ तक छानबीन न हुई, तो भैंसदेही का ये “जमीन घोटाला” मप्र के सबसे बड़े घोटालों में से एक बन सकता है।यह मामला केवल ग्रामीणों या एक तहसील की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की सांठगांठ और उसकी कमजोरी को बेनकाब करता है। बड़े अपराधी हमेशा सिस्टम की कमजोरी में छिपे रहते हैं—जैसे इस प्रकरण में रोहित सेमरे छिपा रहा। अब सबकी निगाहें प्रशासन के अगली कार्रवाई पर टिकी हैं—क्या मास्टरमाइंड पर शिकंजा कसेगा या फिर मामला प्रणाली की उलझनों में दब जाएगा