Jati Janganana:- केंद्र सरकार ने आगामी जनगणना में जातिगत जनगणना को भी शामिल करने का फैसला किया है। 1947 के बाद से जाति जनगणना नहीं हुई। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने 30 अप्रैल (बुधवार) को कहा कि आगामी जनगणना में जातिगत गणना को ‘‘पारदर्शी’’ तरीके से शामिल किया जाएगा। राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा लिए गए निर्णयों की घोषणा करते हुए अश्विनी वैष्णव ने कहा कि जनगणना केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आती है, लेकिन कुछ राज्यों ने सर्वेक्षण के नाम पर जाति गणना की है। भारत में आखिरी बार जनगणना साल 2011 में हुई थी और देश में आखिरी पूर्ण जाति आधारित जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान ही कराई गई थी।
भारत में प्रत्येक 10 साल में होने वाली जनगणना अप्रैल 2020 में शुरू होनी थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसमें देरी हुई। देश में 96 साल बाद जातिगत जनगणना कराने का फैसला किया गया है। इससे पहले 1931 में ऐसा हुआ था। ऐसे में 1931 की जनगणना के आंकड़े और इसकी अहमियत बढ़ गई है।
जातिगत गणना का मतलब?
जातिगत गणना का मतलब है कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं, इसकी गिनती की जाएगी। देश में मौजूद हर व्यक्ति के नाम, लिंग, शिक्षा, आर्थिक स्थिति के साथ जाति का डेटा जुटाया जाता है। यह पता चल जाएगा कि किस जाति की हिस्सेदारी कितनी है। देश में जातिगत जनगणना पहले भी हुई है। केंद्र सरकार जातिगत गणना कराती है और इसके आंकड़े जारी करती है तो आजाद भारत के इतिहास में पहली बार इसके आंकड़े सामने आएंगे। 2011 में जातिगत गणना हुई थी लेकिन तब इसके आंकड़े सरकार ने जारी नहीं किए थे।
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इसकी जरूरत क्यों है?
जातिगत गणना के सवाल से केंद्र सरकार और बीजेपी अब तक बच रही थी। जातिगत गणना की रिपोर्ट अंतिम बार 1931 में सामने आई थी। उसके बाद इससे जुड़ी कोई रिपोर्ट नहीं आई है। 1931 की रिपोर्ट और मंडल कमिशन के रिसर्च के अनुसार देश में पिछड़े वर्ग की आबादी 54 फीसदी है। जातिगत गणना में यह आंकड़ा बढ़ सकता है। साथ ही देश में ओबीसी की आर्थिक और सामाजिक हालात के बारे में पता चलेगा।
देश में दो बार हुई जातिगत जनगणना
देश में अब तक दो बार जातिगत जनगणना हुई है। पहली बार 1901 में ऐसा हुआ था। इसके बाद 1931 में जाति जनगणना हुई। इससे देश की सामाजिक संरचना के बारे में अहम जानकारी मिलती है। 1931 की जनगणना में ही यह सामने आया कि उस समय देश की आबादी 27 करोड़ थी और इसका 52 फीसदी हिस्सा अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल जातियां थीं। इसी आधार पर 1980 में मंडल आयोग ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की थी, जिसे 1990 में लागू किया गया था।
देश में हजारों जातियां और उपजातियां हैं। ऐसे में सभी जातियों का उचित वर्गीकरण करना बेहद मुश्किल है। एक ही जाति के लोग अलग-अलग राज्यों में अलग स्थिति में हैं और सभी के लिए समान नीति बनाना मुश्किल है। हालांकि, पारदर्शी दृष्टिकोण के साथ सावधानीपूर्वक योजना बनाने से इन चुनौतियों से निपटा जा सकता है। इससे जाति आधारित भेदभाव और सामाजिक अंतर को कम करने वाली नीतियां बनाई जा सकती हैं।