MP NEWS:- मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने रविवार को बहुती जलप्रपात का अवलोकन किया। राज्य के सबसे ऊंचे जलप्रपात का अवलोकन करने के बाद उन्होंने मऊगंज जिले के विकास के लिए कई परियोजनाओं को मंजूरी दी। इस दौरान उन्होंने कुल 241 करोड़ रुपये के विकास कार्यों का शिलान्यास और लोकार्पण किया। मुख्यमंत्री मोहन यादव के भ्रमण से पर्यटन के राष्ट्रीय पटल पर इस जलप्रपात को नई पहचान मिलेगी। सीएम यादव पहली बार मऊगंज जिला पहुंचे थे। उन्होंने बहुती वाटरफॉल के नजदीक जाकर व्यू प्वाइंट से जलप्रपात की गिरती हुई दूधिया जल धारा और वहां बनने वाले इंद्रधनुष की आभा का अवलोकन किया।
इस मौके पर कलेक्टर ने बताया कि बहुती प्रपात के अप स्ट्रीम में स्टॉप डैम का निर्माण प्रस्तावित है। स्टॉप डैम में जल का संचय रहने से वाटर फॉल की जल धारा का 12 महीने अविरल प्रवाह बना रहेगा। मुख्यमंत्री ने बहुती प्रपात के पास कार्यक्रम स्थल पर गौपूजा भी की। इस दौरान जंगल में विचरण करने वाली गौमाताओं को अपनी एक आवाज में अपने पास बुलाने की कला रखने वाले रकरी गांव के गौसेवक सौखीलाल यादव ने भी मुख्यमंत्री यादव से मुलाकात की। मुख्यमंत्री यादव अपना उल्लेख गोपालक के रूप में गर्व से करते हैं। मुख्यमंत्री निवास में उन्होंने गौमाता रखते हुए पूजन का नियम बनाया हुआ है।
करोड़ों की लागत से होगा विकास
बहुती जल प्रपात को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने और जन सुविधाओं के विकास के लिए 10 करोड़ रुपए लागत की कार्य योजना प्रस्तावित की गई है। इस अवसर पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी आश्रम की दीदीओं ने मुख्यमंत्री का सम्मान कर उन्हें स्मृति चिन्ह भेट किए।
जुलाई से सितंबर तक दिखती है खूबसूरती
बहुती जलप्रपात रीवा से 75 किलोमीटर दूर मऊगंज जिले में स्थित है। यह विंध्य क्षेत्र ही नहीं पूरे मध्यप्रदेश का सबसे ऊंचा जलप्रपात है। बहुती में सेलर नदी 650 फिट की ऊंचाई से दो धाराओं में बंटकर गिरती है। नीचे सुंदर कुंड और चारों ओर घने वन हैं। बहुती में अनंत जलराशि खड़ी चट्टानों पर गिरती है। जुलाई से सितंबर तक इस प्रपात का सौंदर्य अपने चरम पर होता है। प्रपात के आसपास सुरक्षा प्रबंधों की आवश्यकता है। कई स्थानों पर चट्टानें अचानक ढलान में उतरती हैं। इस प्रपात के समीप ही अष्टभुजा देवी का प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित है। प्रयागराज और बनारस से सड़क मार्ग से सीधे जुड़ा होने के कारण उत्तरप्रदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। इसके पास भैंसहाई में प्रागैतिहासिक काल के भित्तचित्र मिले हैं।