Betul Ki Khabar / भैसदेही (मनीष राठौर) :- परमपिता परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति मानव है। मानव योनी में जन्म लेने का तात्पर्य स्वधर्म का पालन करते हुए सत्कर्मों से उस मार्ग को प्रशस्त करना, जहां से पुन: जन्म लेने की कवायद ही न रहें। उक्त बाते पंडित गोविंद महाराज ने मालेगांव में आयोजित श्रीमद भागवत गीता पाठ ज्ञान यज्ञ के दौरान श्रोताओं को कथा सुनाते हुए कहीं। श्रीमद भागवत कथा के पांचवे दिन पंडित गोविंद महाराज ने कहा हम वैकुंठ धाम की चाहत अवश्य रखते है, किन्तु हम तन से यदि इस स्थल पर है, तो मन कही और भटक रहा होता है। राम भक्त हनुमान की तरह हमारे अंतहकरण में ईश्वर नहीं है, बल्कि तमाम खरपतवार रूपी विकारों से ग्रस्त होने के कारण न तो हमारा तन एवं न ही मन स्वस्थ्य है, यही करण है। ईश्वर को चित्त में धारण करने के लिए पवित्र अंतह करण का होना अनिवार्य है। पंडित गोविंद महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कहा कि लीला और क्रिया में अंतर होता है। अभिमान वसुखी रहने की इच्छा प्रक्रिया कहलाती है। इसे ना तो कर्तव्य का अभिमान है और ना ही सुखी रहने की इच्छा, बल्कि दूसरों को सुखी रखने की इच्छा को लीला कहते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने यही लीला की जिससे समस्त गोकुलवासी सुखी और संपन्न थे। उन्होंने कहा कि माखन चोरी करने का आशय मन की चोरी से है। कन्हैया ने भक्तों के मन की चोरी की। उन्होंने तमाम बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए उपस्थित श्रोताओं को वात्सल्य प्रेम में सराबोर कर दिया। भगवान कृष्ण के जन्म लेने पर कंस उनकी मृत्यु के लिए राज्य की सबसे बलवान राक्षसी पूतना को भेजता है। राक्षसी पूतना भेष बदलकर भगवान कृष्ण को अपने स्तन से जहरीला दूध पिलाने का प्रयास करती है। लेकिन भगवान उसका वध कर देते हैं। इसी प्रकार कार्तिक माह में ब्रजवासी भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए पूजन कार्यक्रम की तैयारी करते हैं। लेकिन भगवान कृष्ण उनको इंद्र की पूजा करने से मना कर देते हैं और गोवर्धन की पूजा करने के लिए कहते हैं। यह बात सुनकर भगवान इंद्र नाराज हो जाते हैं और गोकुल को बहाने के लिए भारी वर्षा करते हैं। इसे देखकर समस्त ब्रजवासी परेशान हो जाते हैं। भारी वर्षा को देखकर भगवान कृष्ण कनिष्ठ अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर सभी लोगों को उसके नीचे छिपा लेते हैं। भगवान द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाकर लोगों को बचाने से इंद्र का घमंड चकनाचूर हो गया। बता दे कि कथा के श्रवण के लिए कथास्थल पर रोजाना बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित हो रहे है। कथा का समापन 7 जनवरी को पूर्णाहुति एवं भंडारे के साथ किया जायेगा।