Betul News: “‘हर घर नल, हर घर जल’ इस नारे ने लाखों ग्रामीणों के दिलों में उम्मीद जगाई थी। उन्हें विश्वास था कि अब रोज़-रोज़ पानी के लिए लंबी दूरियाँ तय नहीं करनी पड़ेंगी। लेकिन बैतूल जिले के भीमपुर ब्लॉक के घोड़पड़ माल के नया ढाना जैसे गांवों में, यह सपना आज भी अधूरा है। करीब 150 घरों की आबादी वाला यह गांव आज भी हर दिन लगभग 1 किलोमीटर दूर से पानी ढोने को मजबूर है। यह केवल एक असुविधा नहीं, बल्कि सरकार और प्रशासन की नाकामी का प्रतीक बन चुका है। ग्रामीणों ने बार-बार PHE विभाग को आवेदन दिए, लेकिन समस्या जस की तस है। योजनाओं की पाइपलाइन सिर्फ कागज़ों में बिछी, और जिन घरों तक नल पहुंचे, वहां से पानी नहीं — सिर्फ ठगे जाने की भावना बह रही है।भ्रष्टाचार की ये धार इतनी गहरी है कि इसका प्रभाव सिर्फ सरकारी बजट पर नहीं, बल्कि आम जनता की सेहत, शिक्षा, और गरिमा पर पड़ता है। जब महिलाएं और बच्चियाँ स्कूल छोड़कर पानी लाने को मजबूर हों, जब वृद्ध और बीमार पानी के लिए तरसें, तो ये सिर्फ जल संकट नहीं होता — ये नीति और नीयत दोनों पर गंभीर सवाल उठाता है।
सरकारी आंकड़ों में कार्य ‘पूर्ण’ दिखाया जा रहा है, लेकिन अगर ज़मीनी सच्चाई जाननी हो, तो घोड़पड़माल के नया ढाना के गांववालों की आंखों में झांकिए। वहां दिखेगी एक गहरी प्यास — सिर्फ पानी की नहीं, बल्कि जवाबदेही, ईमानदारी और इंसानियत की।
यह समय है जब सरकार को यह समझना होगा कि जनता को विज्ञापन नहीं, व्यवस्था चाहिए; नल की तस्वीर नहीं, नल से पानी चाहिए। अगर योजनाएं सिर्फ भ्रष्टाचार की गंगा बन जाएं, तो जनता ऐसे में कहा जाए— क्योंकि प्यास जब हद से गुजरती है,तो पानी कितने भी दूर हो लाना पड़ता है
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“सरकारी फाइलों में ‘हर घर नल से जल’ बह रहा है, लेकिन घोड़पड़माल नया ढाना गांव की हकीकत कुछ और ही बयां करती है। 150 घरों की आबादी रोज़ लगभग 1 किलोमीटर दूर से पानी ढोने को मजबूर है। ये सिर्फ प्यास नहीं, बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता का चुभता हुआ प्रमाण है। ग्रामीणों ने बार-बार PHE विभाग को आवेदन दिए, लेकिन जवाब में मिला सिर्फ आश्वासन — पानी नहीं। जब योजना की पाइपलाइन भ्रष्टाचार से भरी हो और अधिकारियों के कान शिकायतों से बंद हों, तो नल से पानी नहीं, जनआक्रोश बहता है। सवाल ये है कि आखिर ये योजनाएँ जनता की प्यास बुझाने के लिए हैं या ठेकेदारों की जेबें भरने के लिए?”
पीएचई विभाग की सुस्त मशीनरी से प्यासे कंठ
इस जल संकट के केंद्र में हैं पीएचई विभाग की इंजीनियर श्री वंदना उपराले,जिन पर इस योजना के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी थी। लेकिन न पाइपलाइनें ठीक से बिछीं, न कनेक्शन हुए और न ही पानी पहुंचा। नतीजा – गांव प्यासा, अधिकारी बेफिक्र।यह सिर्फ घोड़पड़माल की बात नहीं है। पूरा भीमपुर ब्लॉक पीएचई विभाग की असफलताओं और मिलीभगत से त्रस्त है। हर पंचायत का कोई न कोई ढ़ाना आज भी पानी की बूंद-बूंद को तरस रहा है।
कलेक्टर साहब की चेतावनी,फटकार बेअसर
बैतूल कलेक्टर ने कई बार भीमपुर क्षेत्र का निरीक्षण कर नल-जल योजना में लापरवाही पर विभाग को फटकार लगाई है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ डांटना ही पर्याप्त है? पिछली बार उत्तरी ग्राम में यही जल त्रासदी सामने आई थी। तब भी प्रशासनिक हलचल मची थी, तब भी अधिकारियों को चेताया गया था। लेकिन आज घोड़पड़माल की गलियों में वही सूखा घूम रहा है,बस तारीख और गांव का नाम बदल गया है। समाधान नहीं आया।
कलेक्टर साहब से अब उम्मीद है कि नल जल योजना के तहत हुए कार्यों का पब्लिक ऑडिट कराया जाए, और दोषियों पर आपराधिक मामला दर्ज कर कार्रवाई की जाए। यह केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि एक जन-विश्वास के साथ विश्वासघात है।