जानिए कैसे रानी गुंडिचा बनीं भगवान जगन्नाथ की मौसी?

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Jagannath Rath Yatra 2025:- पुरी में हर साल निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की शुरुआत इस बार 27 जून को हुई। आषाढ़ माह की द्वितीया तिथि पर भगवान जगन्नाथ को उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ सिंह द्वार लाया गया और फिर उन्हें प्रेमपूर्वक उनके रथों पर विराजमान किया गया। यह अनूठी रस्म ‘पहंडी’ कहलाती है, जिसमें भक्तों द्वारा भगवान को कंधों पर उठाकर रथ तक लाया जाता है। भगवान को रथ पर बिठाकर भक्त उन्हें खींचते हुए लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर तक ले जाते हैं। यह मंदिर भगवान की मौसी यानी देवी गुंडिचा का निवास स्थान माना जाता है। लेकिन सवाल है कि रानी गुंडीचा आखिर भगवान जगन्नाथ की मौसी कैसे बनीं और इनका क्या संबंध है…

जानिए कौन है माता गुंडिचा ?

यहां पर माता गुंडिचा को भगवान जगन्नाथ जी की मौसी माना जाता है। वह राजा इंद्रद्युन की पत्नी हैं। जिनका मंदिर राजा ने ही बनवाया था। जगन्नाथ मंदिर से, गुंडिचा माता मंदिर 3 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर को कलिंग काल की वास्तुकला का नाम दिया गया है। माता गुंडिचा और भगवान जगन्नाथ जी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। भगवान जगन्नाथ की प्राण प्रतिष्ठा कैसे हो, इस पर विचार चल रहा था। तभी नारदजी आए और उन्होंने बताया कि यह काम ब्रह्माजी ही कर सकते हैं। तब राजा इंद्रद्युम्न, नारदजी के साथ ब्रह्माजी से आज्ञा लेने ब्रह्मलोक चले गए।

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राजा के जाने के बाद रानी गुंडिचा ने गुफा में जाकर तपस्या करने का फैसला किया। इसके बाद भगवान जगन्नाथ जी आए और उनसे माता गुंडिचा ने वचन लिया। वचन में लिया कि आप मुझसे हर साल मिलने जरूर आना। माना जाता है कि तब से भगवान जगन्नाथ हर साल माता गुंडिचा से मिलने जाते हैं और वहां 7 दिन बिताकर वापस अपने मंदिर में आते हैं।

गुंडिचा माता कौन से पकवानों से करती हैं भगवान का स्वागत ?

भगवान जगन्नाथ जब अपनी मौसी माता गुंडिचा के पास पहुंचते हैं तो माता गुंडिचा माता उन्हें कई तरह के पकवानों को खिलाती हैं. जिसमें कि खासकर पिठादो और रसगुल्ला शामिल है. माना जाता है कि आज भी भगवान इस पिठादो और रसगुल्ला को खाकर बहुत प्रसन्न होते हैं. हर साल भगवान के पहुंचने पर इस मंदिर में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं और भगवान जगन्नाथ का स्वागत किया जाता है

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