MP news: मध्य प्रदेश ओबीसी आरक्षण के मामले में बड़ा अपडेट सामने आया है। जबलपुर हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है। राज्य सरकार को जवाब देने का आखिरी मौका मिला है। हालांकि, अगर सरकार एमपी की प्रतिक्रिया नहीं आती है तो कदम उठाए जाएंगे। दरअसल, द यूनियन फॉर डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस नामक संगठन की ओर से दायर याचिका में जनसंख्या के हिसाब से 51% आरक्षण की अनिवार्यता बताई गई है। हाईकोर्ट इस मामले में 11 बार सुनवाई कर चुका है।
लेकिन सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं आया। न ही याचिका को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की गई। अब तक पेश की गई दलीलों को देखते हुए हाईकोर्ट ने यह कदम उठाया है। 15 हजार का जुर्माना लगेगा इस मामले में सरकार को जवाब बताने के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि इसके बाद भी कोई जवाब नहीं मिलने पर सरकार पर 15 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा?
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2 अप्रैल को मुख्य न्यायाधीश सुएश कुमार कैत और विवेक जैन की बेंच में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से रामेश्वर सिंह और विनायक प्रसाद ने दलील दी कि 2011 की जनगणना के अनुसार 50.9% सीआईटीसी, 15.6% एससी, 21.14% एसटी, 3.7% मुस्लिम और 8.66% अनुसूचित जाति के लोगों को आरक्षण दिया गया है। सरकार ने एससी को 16%, एससी को 20%, सीआईटीसी को 14% और सामान्य को 10% आरक्षण दिया है, जो नागरिक संहिता के लोगों के साथ न्याय है। इस वजह से युवा वर्ग को भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।