जानिए मक्के की फसल के प्रमुख कीट ,झट से होगी बीमारी दूर

By Shrikant Tripathi

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मक्के की प्रमुख कीट

तना छेदक कीट: यह कीट मक्के के लिए सबसे हानिकारक कीट है। उल्लेखनीय है कि इसके लार्वा 20 से 25 मिमी लंबे तथा भूरे रंग के होते हैं। इसका सिर काला होता है तथा चार लंबी भूरी रेखाएं होती हैं। इस कीट के लार्वा तने में छेद करके अंदर से खाते रहते हैं। फसल के प्रारंभिक अवस्था में होने वाले संक्रमण से मक्के के दाने नहीं बन पाते हैं, परन्तु बाद की अवस्था में जब संक्रमण होता है तो पौधे कमजोर हो जाते हैं तथा दाने छोटे-छोटे बनते हैं और हवा लगने पर पौधा बीच से टूट जाता है।

मक्का कटवा कीट: इस कीट के लार्वा काले रंग के होते हैं, जो दिन में भूमि में छिपे रहते हैं। रात में यह नए पौधों को मिट्टी के पास से काट देते हैं। ये कीट भूमि में छिपे रहकर पौधे के बढ़ने के तुरन्त बाद ही हानि पहुंचाते हैं। कटवा कीट के गंदे भूरे रंग के कैटरपिलर पौधे के कोमल तने को मिट्टी की सतह के स्तर पर काट देते हैं और इससे फसल को भारी क्षति पहुंचती है। सफेद घुन पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं।

मक्का सैनिक कीड़ा: सैनिक कीड़ा हल्के हरे रंग का होता है, जिसकी पीठ पर धारियां होती हैं तथा सिर पीले भूरे रंग का होता है। बड़ा कैटरपिलर हरा होता है, जिसकी पीठ पर काली धारियां होती हैं। यह रेंगकर चलता है। सैनिक कीड़ा ऊपरी पत्तियों तथा कोमल तने को काट देता है। यदि प्रति वर्ग फुट में 4 सैनिक कीड़े पाये जायें तो इनका नियंत्रण आवश्यक हो जाता है।

फॉल आर्मीवर्म: यह एक ऐसा कीट है जिसमें एक मादा कीट अपने जीवन काल में एक हजार से अधिक अंडे एक साथ या समूह में देती है। इसके लार्वा की त्वचा कोमल होती है जो उम्र बढ़ने के साथ हल्के हरे या गुलाबी से भूरे रंग की हो जाती है। अंडों का सेकन अवधि 4 से 6 दिन की होती है। इसके लार्वा पत्तियों के किनारे से पत्तियों की निचली सतह तथा मक्के के दाने को खाते हैं। लार्वा का विकास 14 से 18 दिन में होता है। इसके बाद यह प्यूपा में बदल जाता है, जो लाल भूरे रंग का दिखाई देता है। यह 7 से 8 दिन बाद वयस्क कीट में परिवर्तित हो जाता है। इसके लार्वा काल से ही मक्के की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता है।

एकीकृत कीट प्रबंधन के उपाय

फसल की समय पर बुवाई करें। सिफारिश अनुसार पौधों की दूरी पर बुवाई करें। उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें, जैसे कि अधिक नाइट्रोजन का प्रयोग न करें। खेत में पड़े पुराने घास-फूस एवं फसल अवशेषों को नष्ट कर दें। मरे हुए पौधों को देखते ही प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें। मक्के की फसल की कटाई के बाद बचे हुए अवशेषों, घास-फूस एवं अन्य पौधों को नष्ट कर दें। एकीकृत कीट प्रबंधन के लिए प्रति एकड़ 5 से 10 ट्राइकोकार्ड का प्रयोग करें। जहां पर खरीफ ऋतु में मक्के की खेती की जाती है वहां ग्रीष्मकालीन मक्के की बुवाई न करें। अंतः फसल के रूप में दालें जैसे मूंग, उड़द की खेती करें। फसल की बुवाई के तुरन्त बाद खेत में प्रति एकड़ 8 से 10 टी-आकार के खंभे लगाकर पक्षियों के बैठने की जगह उपलब्ध कराएं। फॉल आर्मीवर्म के नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर 10 से 12 फेरोमोन ट्रैप लगाएं। फसल का निरीक्षण 7 दिन के अंतराल पर करें। बोरर कीटों के लिए क्लोरान्ट्रानिलिप्रोल 18.5 एससी की 0.5 मिलीलीटर की मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। आइसोसाइक्लोसेरम 18.1 एससी की 2 मिलीलीटर की मात्रा को 3 लीटर में घोलकर छिड़काव करें। उपरोक्त बताये गये कीटनाशकों के अलावा फॉल आर्मीवर्म के लिए स्पिन्टोरम 11.7 एससी की 0.5 मिलीलीटर की मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। तना छेदक, तना मक्खी व थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए कार्बाफ्यूरान 3 सीजी (दानेदार) का 33 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रभावित होने की स्थिति में खेत में डालें।

मक्के की प्रमुख बीमारियां

पत्ती धब्बा रोग: मक्के के पौधों की पत्तियों पर पत्ती धब्बा रोग का प्रभाव दिखाई देता है। इस रोग के प्रभाव से पौधे की निचली पत्तियां प्रारंभ में सूखने लगती हैं, पत्तियों पर लंबे, अंडाकार, भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जैसे-जैसे रोग बढ़ता है पौधे की ऊपरी पत्तियां भी धीरे-धीरे सूखने लगती हैं जिससे पौधे का विकास रुक जाता है।

तना सड़न रोग: मक्के की खेती में तना सड़न रोग का प्रभाव अधिक वर्षा से जलभराव होने पर पौधों के बढ़ने के समय दिखाई देता है। यह रोग पौधे के पहले नोड से शुरू होता है, जब यह रोग होता है तो पौधों के तने के छिद्रों पर पानी वाले धब्बे दिखाई देने लगते हैं। जो बहुत जल्दी सड़ने लगते हैं। सड़ने वाले भाग से शराब जैसी गंध आती है। पौधे की पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैं, जिसका प्रभाव बाद में पूरे पौधे पर दिखाई देता है।

भूरे रंग की धारीदार झुलसा रोग: यह एक फंगस रोग है। इस रोग के कारण पौधों की पत्तियों पर हल्के हरे या पीले रंग की 3 से 7 मिमी चौड़ी धारियां दिखाई देती हैं, जो बाद में गहरे लाल रंग की हो जाती हैं। नम मौसम में इन पर सुबह के समय सफेद रूई जैसे फफूंद दिखाई देते हैं। इस रोग के कारण पौधों से निकलने वाले मक्के के दानों की संख्या कम हो जाती है, जिससे उत्पादन में भी कमी आती है।

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कुकुरमुत्ता: मक्के की फसल में इस रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों पर दिखाई देता है। इस रोग के कारण पौधे की पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे, लाल या भूरे रंग के अंडाकार, उभरे हुए धब्बे दिखाई देते हैं, जिन्हें छूने पर एक ग्रे रंग का पाउडर हाथों से चिपक जाता है। ये फफोले आमतौर पर पत्तियों पर एक पंक्ति में दिखाई देते हैं। अधिक नमी होने पर यह रोग पौधों पर फैलता है, जिससे पौधे की पत्तियां पीली पड़कर नष्ट हो जाती हैं, जिससे पौधों का विकास रुक जाता है।

नियंत्रण के उपाय

बीज उपचार के बाद ही बुवाई करें। खेत को खरपतवार मुक्त रखें। खेत की तैयारी करते समय खेत की गहरी

Shrikant Tripathi

मेरा नाम Shrikant Tripathi है मैं लगातार 2 वर्षो से डिजिटल मीडिया में कार्य कर रहा हूँ। betultalk.com के साथ मैं पिछले 1 वर्ष से जुड़ा हूँ. खेती और देश की मुख्य खबरों में मेरी विशेष रूचि है. देश की हर खबर सबसे पहले पाने के लिए betultalk.com के साथ जुड़े रहे।

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