Betul News Today: बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल ने उठाया खिलाड़ी बच्चों का खर्च,भूटान जाने की पूरी रकम सौंप दी,

By betultalk.com

Published on:

Follow Us

Betul News Today: रक्षा आज बेहद खुश हैं। उनके साथ खुशी, रिया और उनके जैसे दस अन्य बच्चे और उनके परिवार भी बेहद खुश हैं। अब ये बच्चे अगले महीने भूटान की राजधानी थिम्पू में होने वाली साउथ एशियन लाठी चैंपियनशिप में हिस्सा ले सकेंगे। आर्थिक तंगी के चलते बैतूल के ये खिलाड़ी भूटान नहीं जा पा रहे थे।

दैनिक भास्कर ने मंगलवार को इन बच्चों की परेशानी का मुद्दा उठाया था। जिसके बाद आज (बुधवार) बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल ने भूटान जाने वाले सभी बच्चों का पूरा खर्चा उठाकर पूरी राशि उन्हें सौंप दी है।

दरअसल, भूटान के थिम्पू में आयोजित साउथ एशिया लाठी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए बैतूल के 16 खिलाड़ियों का चयन हुआ है। लेकिन यात्रा का खर्च और फेडरेशन की फीस वहन करना उनके बस की बात नहीं थी। इसके लिए फेडरेशन 15 हजार रुपए ले रहा है। जबकि यात्रा किराया, खाने-पीने पर 5 से 6 हजार रुपए खर्च होंगे। इतनी बड़ी रकम का इंतजाम वे कैसे करेंगे। यही चिंता खिलाड़ियों और उनके परिजनों को सता रही थी।

कई संगठन, पदाधिकारी और समाजसेवी भी आगे आए

भास्कर में खबर प्रकाशित होने के बाद बैतूल के बालाजी फाउंडेशन, अमरावती के सवेरा फाउंडेशन, डॉक्टर्स एसोसिएशन, एडवोकेट्स ग्रुप, कुछ आईएफएस और शिक्षक समूह ने सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से इन बच्चों की मदद करने की इच्छा जताई। 24 घंटे में कई संगठन लगातार दैनिक भास्कर से संपर्क कर इन बच्चों की मदद के लिए आगे आ रहे थे।

बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल ने बताया कि वे दो दिन से बाहर थे। दैनिक भास्कर एप पर बच्चों की भूटान यात्रा की खबर देखी तो उन्हें बच्चों की आर्थिक परेशानी का पता चला। आज बैतूल पहुंचते ही उन्होंने बच्चों के कोच और परिजनों को फोन कर पूरी यात्रा का खर्च और फीस दी। उन्होंने कहा कि वे खेल प्रतिभाओं को आर्थिक तंगी के कारण कभी निराश नहीं होने देंगे। वे पहले भी इन बच्चों की आर्थिक मदद कर चुके हैं।

विनोद और कमला की खुशी का ठिकाना नहीं

लाठी खिलाड़ी रिया, खुशी, सिया और रुचि के ट्रक ड्राइवर पिता विनोद भोंडे और मां कमला अपने बच्चों को भूटान भेजने के लिए पैसों की समस्या से परेशान थे। आज जब विधायक कार्यालय से उन्हें मना किया गया तो वे हैरान रह गए। लेकिन उनकी निराशा तब खुशी में बदल गई जब विधायक श्री खंडेलवाल ने न सिर्फ उनकी बेटियों बल्कि अन्य सभी खिलाड़ियों का खर्च उठाया।

शिक्षा विभाग भी कर रहा प्रयास

दैनिक भास्कर एप पर खबर आने के बाद स्कूल शिक्षा विभाग भी बच्चों की मदद के लिए प्रयास कर रहा था। डीईओ अनिल कुशवाह ने सभी बच्चों की सूची मंगवाई थी और उनकी मदद के प्रयास शुरू किए थे। इसी बीच विधायक की मदद पहुंच गई।

चूंकि लाठी प्रतियोगिता को राष्ट्रीय खेलों में शामिल हुए अभी बहुत कम समय हुआ है, लेकिन अभी तक खेल एवं युवा कल्याण विभाग में इस खेल में खर्च का प्रावधान नहीं किया गया है। जिसके कारण सारा खर्च खिलाड़ियों और उनके परिजनों को उठाना पड़ रहा है। खास बात यह है कि बैतूल में जो भी बच्चे इस खेल में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, वे सभी मध्यम और निम्न आय वर्ग से हैं। महज चार साल में उन्होंने लाठी खेल की कई विधाओं में अपना हुनर ​​दिखाकर बैतूल का नाम रोशन किया है। लेकिन अब जब उन्हें विदेश में यह हुनर ​​दिखाना है, तो उनके सामने पैसों की कमी आ गई।

छोटी उम्र में बड़े खिलाड़ी

छोटी उम्र के ये बड़े खिलाड़ी दरअसल इस लॉकडाउन से उभरे हैं। जब लोग घरों से बाहर निकलने से भी डर रहे थे। विनोद बुंदेले ने इन छोटे बच्चों को इस खेल में हुनरमंद बनाया। कुश्ती और कुश्ती में अपना पूरा जीवन गुजारने वाले 52 वर्षीय विनोद व्यायामशालाओं में युवाओं को मल्लखंभ से लेकर लाठीबाजी, मुगल घुमाव, तलवारबाजी तक सब कुछ सिखाते रहे हैं। जब लॉकडाउन हुआ, तो उन्होंने व्यायामशाला के इन बच्चों को लाठीबाजी का हुनर ​​सिखाने का संकल्प लिया।

उन्होंने साल 2020 में बच्चों के साथ खूब मेहनत की। इसका नतीजा यह हुआ कि उनके सिखाए खिलाड़ी अब जहां भी जाते हैं, अपनी जीत का परचम लहराते हैं। खुशी बताती हैं कि लॉकडाउन के दौरान विनोद भैया ने बुलाया तो खेलने चली गई। खेल इतना अच्छा लगा कि लाठीबाजी शौक बन गया और फिर जुनून बन गया। अब जब भी किसी प्रतियोगिता में भाग लेती हूं और पदक जीतती हूं तो लगता है कि मैंने अपने समय का सदुपयोग किया। इससे मुझे एक नई बात सीखने को मिली कि कैसे इस हुनर ​​के जरिए हम मैदान में जाकर खुद की सुरक्षा कर सकते हैं और जरूरत पड़ने पर किसी की मदद कर सकते हैं। मैंने लाठी इसलिए चुनी ताकि खुद को सुरक्षित रख सकूं। मेरे माता-पिता ने मुझे खेलने से कभी नहीं रोका, लेकिन पैसों की कमी ने मुझे लाठीबाजी से रोक दिया। मुझे तीन अगस्त को भूटान पहुंचना है। भारतीय टीम हासीमारा में उतरने के बाद वहां जुट रही है। वहां एक बच्चे के रहने का खर्च 1500 रुपये प्रतिदिन है। मुझे चार दिन रुकना है। उसका किराया 6 हजार रुपये, आने-जाने का खर्च 3 हजार रुपये और फेडरेशन की फीस 15 हजार रुपये है।

Leave a Comment