Betul Samachar: 13 बच्चों का चयन कॉकलियर इंप्लांट के लिए किया गया है, जिनकी सर्जरी निशुल्क की जाएगी। इस पर करीब 70 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। यह कदम बैतूल कलेक्टर की पहल पर उठाया गया है। यह जिले के लिए बड़ी उपलब्धि है। अरविंदो हॉस्पिटल इंदौर के विशेषज्ञों ने दो दिन तक जिले में बच्चों की जांच की। 61 बच्चों में से 23 बच्चों की सुनने की क्षमता की जांच की गई। इसके बाद 13 बच्चों का चयन कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी के लिए किया गया। इन बच्चों को मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के तहत 600000-50 हजार रुपए तक का निशुल्क इलाज मिलेगा। इस दौरान 16 बच्चों के जेडटीपी कार्ड भी जारी किए गए। दो दिन तक बच्चों की जांच की गई आरबीएसके प्रबंधक योगेंद्र दवंडे ने बताया कि जिले में पहली बार श्रवण बाधित बच्चों की सुनने की क्षमता की जांच की गई है। श्री अरविंदो हॉस्पिटल इंदौर की टीम श्रवण क्षमता की जांच के लिए सभी जरूरी उपकरण लेकर बैतूल पहुंची। डीआईसी जिला अस्पताल बैतूल में दो दिन तक बच्चों की जांच की गई। इसमें जन्म से लेकर 5 साल तक के बच्चे शामिल थे। श्री अरबिंदो अस्पताल इंदौर की एक टीम जांच के लिए बैतूल पहुंच गई है। यह एक कॉक्लियर इम्प्लांट है – कॉक्लियर इम्प्लांट एक छोटा और जटिल इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो पूरी तरह से बहरे या कम सुनने वाले लोगों को ध्वनि सुनने में मदद करता है। इसके दो भाग होते हैं – एक बाहरी भाग जो कान के पीछे लगाया जाता है और दूसरा भाग जिसे शल्य चिकित्सा द्वारा त्वचा के नीचे प्रत्यारोपित किया जाता है। ऐसे काम करता है यह इम्प्लांट – कॉक्लियर इम्प्लांट एक तरह का हियरिंग एड है, लेकिन यह सामान्य हियरिंग एड से अलग तरीके से काम करता है। सामान्य हियरिंग एड केवल ध्वनि को इतना बढ़ाता है कि बहरे भी उसे सुन सकें, लेकिन कॉक्लियर इम्प्लांट आंतरिक कान के क्षतिग्रस्त हिस्सों को बायपास करता है और सीधे मस्तिष्क को संकेत भेजता है। हमारे कान में मौजूद भाग को “कोक्लीअ” कहा जाता है जिसका उपयोग ध्वनियों को समझने के लिए किया जाता है। अगर यह हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाए तो सामान्य हियरिंग एड भी काम नहीं करेगा। जांच के दौरान 16 बच्चों के जेडटीपी कार्ड भी बनाए गए। हालांकि, कोक्लियर इम्प्लांट इस क्षतिग्रस्त हिस्से को बायपास कर देता है और सीधे उस तंत्रिका को उत्तेजित करता है जो मस्तिष्क को ध्वनियों के बारे में बताती है। मस्तिष्क इससे इन संकेतों को प्राप्त करता है और उन्हें ध्वनियों के रूप में पहचानता है। यह प्रक्रिया सुनने के सामान्य तरीके से अलग है, इसलिए इम्प्लांट डालने के बाद व्यक्ति को नई आवाज़ें समझने में समय लगता है। आपको बता दें कि दिसंबर 2019 तक दुनिया भर में करीब 7 लाख 36 हज़ार 900 रजिस्टर्ड डिवाइस लगाए गए थे।
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